पशुपालन आज भी आजीविका है और कोरोना जैसे संक्रमण से मुक्त धंधा है। इससे प्रतीत होता है कि हमारे पूर्वज बहुत दूरदर्शी थे, इस धंधे के बल पर अपने आप को साम्राज्यवादियो से ही नही बचाया, इलाज विहीन दुनिया मे अपनी कॉम के वजूद को बनाये भी रखा। कई प्रकार की संकरण, संक्रमण और छुआछूत की बीमारियों से ख़ुद मानवता को बचाये रखा।
आज भी हमारे पूज्य देव पाबूजी कहते है कोशिस करो कि आप होटल के खाने पीने से दूर रहो। झुठन से दूर रहो।
।पशुपालन एक ऐसा सदाबहार धंधा है जो सब धंधे बंद होने पर भी चालू है क्यो की यह सीधा जीव और आत्मा से जुड़ा है।
हमे समझना चाहिए कि ज्ञानी केवल पदवी या कॉलेज स्कूल विश्वविद्यालय वाले ही नही,अनपढ़ भी होते है।।
कुछ धंधे ऐसे होते है जो पैशन के लिए नही ~अपने~ वजूद के लिए भी रखने होते है।
पशुपालन और प्रवास ऐसे ही वजूद वाले काम है जो सदैव कॉम की रक्षा करेंगे।
जय हिंद
राजेन्द्र रबारी कोटा
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