नशा नाश की जड़

 *प्रदुषित वातावरण से खतरे में समाज- राजेंद्र रबारी*


आज मैं समाज की एक बहुत बड़ी बीमारी की चिंता आप सब के सामने लाया हूं ।

यह बीमारी क्यो चिंता का विषय है?  मैं और मेरा भारत समाज ही नही अपितु इसका विश्व बिरादरी भी गबाह है। 

एक शब्द है मधुशाला। मधु नाम तो शहद का है। मगर बिकता यह शराब है। है न कितना रोचक। यह नाशवान नशा है कितना चतुर की नाम मे भी काम कर लेता है।

सच है, जहाँ होते है संगठित अपराध वहा होते है, ऐसे पर्दे जो समाज को यह नही समझ ने देते की क्या सही और क्या गलत है।

*अश्लीलता सही है या बॉलीवुड।*

नैतिकता जरूरी है या आइटम सॉन्ग। शिला की जावानी जरूरी है या पत्नी का प्यार। बहन जरूरी है या जो आप गिद्ध नजर से हर गुजरती मर्यादा को माल या पटाखे बोलते हो।

क्यों कि आप को इन सब के प्रति झुकाव है। कहा है लगा या रोग आप को। आप को मीरा या माता रुक्मी वाला सच्चा प्रेम रोग भी नही लगा। आप को यह क्या भेड़िया वाला बीमारी लग गई है। मौका मिला तो नोच लो,आती- जाती, मा-बहन बच्ची की अस्मत। आप पर कानून का इतना खोप की बलात्कार के बाद आप हत्या भी कर देते है।आप को इतनी दमनात्कमक  हिम्मत कहा से आती है। आप की माँ ने आप को जन्म से शरीर का दूध पिलाया और बोला है मेरे दूध की लाज रखना। आप प्रथम गुरु जी,माता  पिता और समाज की सब शिक्षा को कैसे छोड देते हो।आप में मात-पिता और समाज की बात नही मानने की इतनी शक्ति कहा से आ जाती है। आप ने जो विकृति पाई है उसे क्या कहेंगे? आप हवस और दारू के लिए घर वाले को नीलाम कर देते हो उनको बेबस छोड़ देते है और दारू पीने या बलात्कार के लिए निकल पड़ते हो।आप तो यहा तक डर नही रहता,कि एक दिन आप पकड़े जावोगे और फंदे पे झूलोगे। आप को इतनी हिम्मत बुराई के लिए कहा से आ जाती है। आप समाज की अच्छाई को छोड़ देते हों।

सही है आप की गलती नही है । यहां समाज वही काट रहा है जो बो रहा है। यह आप को स्कूल से लेकर आप के बचपन से लेकर आप को जवानी तक, आप यह समझाने लगा की क्या सही है क्या गलत है? आप को आइटम सॉन्ग और ब्लू फिल्मी के साथ पालता है। आपको तब तक सींचता है जब तक कि आप बारूद न बन जावो। आप के अंदर उसे पाने की इच्छा न हो जाए। आप के कुंठित होने तक भी, आप को समाज का यह चिकनी चमेली ओर दिल्ली जैसे  शहरों की हैवानियत वाली जहरीली शौकिया जोड़ी की लत नही लग जाती तब तक समाज का प्रदूषण साथ है । दोस्तो दिल्ली की झाड़ियों वाली जोड़िया देखकर क्या हमारे बच्चे बैठे रहेंगे क्या? बच्चो की फितरत होती ही है देख के सीखें। तो क्या होगा आपके बच्चे क्या यह सब नही देख रहे है कि फिल्मी जगत का यह प्रैक्टिकल आप के बच्चे देखेंगे तो रिसर्च का नतीजा क्या होगा। आपने बार, पब डांस, बार नाईट क्लब भी ट्रेनिगं  देने के लिए खोल रखे है। क्या यह समाज सही कर रही है? क्या यह ऐसे ही आनंद लेना चाहते है। क्या ऐसे ही सभ्य समाज की उम्मीद करेंगे। क्या यह दोषी नही समाज है-समाज विकृति- मानसिकता का। पब,बार ट्रेनींग का क्या रिजल्ट होगा आप को नही पता है क्या? वहा पैसा लूटने लूटाने वाले क्या करेंगे। कैसे माहौल को जन्म देंगे। जब आप को यह रंगिन जीवन से इतना मोह है तो क्यों? आप कठोर क़ानून और मोमबत्ती को ले घूमते हो। सबसे ज्यादा पार्को में स्कूल एवं कॉलेज के बच्चे होते है।  जब आप सब को अपने चाल चलन से इतना संक्रमित करते हो तो क्या आपको हक़ है कि आप समाज मे ऐसा जहर घोल के मोमबत्ती लेकर विरोध करो कठोर कानून मांगो ,फांसी मांगो। मां के पेट से आने वाले को न सेक्स का पता होता है ना हवस का। यह सब  आप से ही देख सुन सिखते है बच्चे । मेरे प्यारे साथियों यह आप की जिम्मेदारी है कि आप की तरफ से कोई जहर नही पिए। किसी पुरुष या स्त्री के साथ गलत न हो। आय अच्छा समाज चाहते है तो क्लब व पार्को में जाना छोड़ दो।समाज अपने आप  घाव भर लेगा। आप बाज़ार में दारू और आयटम सांग की डिमांड बंद कर दो। फिर देखो की कैसे माहौल नही सुधरता है। आप के सामुहिक प्रयास का जरूर सही प्रभाव होगा। आप को सफलता मिलेगी। आप को फिर न्याय के लिए कठोर कानून व मोमबत्ती के वास्ते प्रदर्शन नही करने होंगे। आपके समाज की इज्जत खराब होते अखबारों की सुर्खियां नही बनेगी। यह सब आप पे है। आप पर्दे के महत्व समझे। क्योंकि हर इंसान समझदार है और आप की उम्र के असर को समझता है। 

कठोर कानून का दुरुपयोग न हो। यह भी आप की जिम्मेदारी है। क्यो की आप दहेज विरोधी कानून और sc/st कानून के प्रावधानों के इस्तेमाल से परिचित है। इसमे बलात्कार हो या हत्या सब के पीछे एक ही "कमजोर कड़ी" है वो है "चरित्र"का कमजोर होना। आप बचपन से चरित्र का कमजोर विकास पाते हो क्योंकि आज का वातावरण है ही जहरीला। आप का नाज़ुक दिल कायल हो जाता है आज की आधुनिक जीवन मे घटित महफ़िल की दस्तानों का। आप का शुरुआत से  चरित्र निर्माण कमजोर होता है। आप के इस पहलू पर शिक्षा और समाज चुप है। इस लिए आप ज्ञान विज्ञान और विडियो ग्राफी में आगे हो। इस मे कुछ रोल आप के दिल में बैठ जाते है। आप गलती कर बेठते  है। धीरे धीरे कीचड़ में डूब जाते है। यह सब देख रहा है नन्हा बालक कोमल-कोमल आंखों से। क्या अरमान पैदा होंगे उसके दिल मे, आप जानते है ही हो। यही तो कारण है लोग बॉय फ़्रेंड और गर्ल फ्रेंड के चकर में पड़ जाते है। कहानी प्रेम, लिवइन  रिलेशनशिप ,कहानी घर घर सी लगती है। कुछ लोग इतने डूबे होते है, यह दृश्य शादी के बाद भी नही भूलते, नतीजा,आप जानते है तलॉक और पति पत्नी के रिश्ते में दरारें। शक और हत्या,वेध ओर अवैध रिश्तों का जाल चल पड़ता है। यही चीज है मानव जीवन की गरिमा गिर जाती है। इंसान हवस को शोक बना लेता है।रिश्तों को छोड़ देता है। अच्छे- बुरे से परे हो जाता है। सेटिंग नाम उस को भा जाता है। यह सेटिंग आप बनाते  ही क्यो हो। क्योंकि जीवन मे आप को गरिमा के मुताबिक एक जीवन साथी निश्चित है। समय  के बिना कोई काम नही होता है। आप को शिक्षा पाने के लिए वर्षो तक पढ़ना पड़ता है। क्या आप यह सब देखते क्यो नही है। आप के दिल मे सोच होना चाहिए आप तारीफ ओर शिकायत में अंतर जानते है।इस लिये आप दंड के  हकदार है। आप को सजा किये की मिलती है ,फिर अपसोस किस बात का। समाज ऐसा माहौल बच्चे को दे के ,उसे प्रदर्शन का हक नही है। हम वहीं काट रहे है जो वर्षो के प्रयासों से हम ने जो चरित्र में जहर घोला है।


सामाजिक और आर्थिक परिणाम बहुत गंभीर होते है। मेरे  जानकारी में कई परिवार है । जहाँ  दारू का जबरदस्त असर है। उन्हें 20रुपये का पवा चाहिए रोजगार नही। उनको काम पे नही जाना है। क्यो की उनको नशे की लत हो गई है। बच्चे बड़े हो गए है घर खर्चे बाढ़ की तरह बढ़ गए है। औरतों पर दबाव हो गया है। घर मे झगड़े बढ़ गए है। यह दोष पीने वाले के नही है, क्योंकि पैदा होने वाला हर इंसान दूध ही पिता है दारू नही। उसे यह ज्ञान समाज की संगत से मिलता है शुरुआत में असर कम हद तक है। स्टेटस ओर यारी दोस्ती से मीठे मीठे जहर  के रूप में घर करता जाता है। फिर यह नशा एक दिन आप को निगल जाता है। यह आप को आलसी और तलबगार बना देता है। आप क्षेत्र में खाने पीने वाले के नाम से जाने जाने लगते हैं।  आप का सीना 56 इंच हो जाता है। घर वाले कुछ सदस्य मजबूरी वस गलत हाथो में पड़ जाते है। क्योंकि घर चलाने के लिए हाथ फैलाने पड़ते है। फिर घर मे भूखे बच्चे औरत नही देख सकती। कुछ काम पे निकाल पड़ती है। कुछ गीदड़ों के निशाने पे आ जाते है। धीरे धीरे दारू ओर शराब मजबूत होती है ,गैंग बन जाती है, बच्चों को इनके लिए भी खाना पीना देखना पड़ता है। शराबियों को महफिल का आनंद आते है, परिवार के लिए जीना दुष्वार हो जाता है। देखते देखते कुछ परिवार के सदस्य अनैतिक हो गए। परिवार के  झगड़े बढ़ गए। समाज मे किरकिरी होने लगी। आज दुखद जीवन सब के सामने है। इस लिये अश्लीलता और लत का यह गठजोड़ आग सा नागपास बन गया। 


क्या इतना जानने के बाद भी समाज का दिल नही पसीजता। *शराब की बिक्री करके ही पैसा कमाना है*, क्या फायदा यह शराब आप को कैसे अच्छी दुल्हन और दूल्हा देगी। आप को संस्कारी लड़के लड़की कैसे मिलेंगे। आप ने लत जो बना दी। पब एवं बार डांस होल सब तो छोड़ दिये इन कोमल संस्कारो को आप ने रौंदने के लिए। क्या कसर छोड़ी है हम ने माँ के संस्कारों को तोड़ने में। माँ के दूध की लाज को गिराने के लिए हर कदम पे हम ने आशिक़ी के नशे पे कशीदे पढे है। क्या गजल क्या शायरी बस तेरे गुनावों के बकानो पे वार दी ।

कहा से जीवन में शान्ति होगी। हर ओर स्त्रियोंपर जब गिद्ध दृष्टि होगी। हर किसी को सबनम सा देखा जाएगा।  

चरित्र का आधार भाव होता है। और हमारे भाव किशोर  अवस्था में ही विकृतियों के अधीन हो जाते है।कामुकता और स्टंट से जीवन जीने एवम करने के ख्याल आने लगते है।

यही युवा पीढ़ी में  गम होने के निशान हो जाते है। कि बिना पिये नाचे तो जीवन है ही नही। लव की    चोरी चोरी धड़कन से पीछा करने लगते हैं कही एक तरफ़ा तो कही दो तरफा आग लगी रहती है। आप को धुँआ दिखाई देता है। आज कही गली में पुलिस आयी  है क्या हुआ क्या हुआ?  सूनाइ देगा कोई  rape (रेप)हो गया है कोई  हत्या हो गए है, कोई  माँ बाप की इज्जत को दीमक के हवाले कर गया है। किसी के दाम्पत्य जीवन मे तूपान आ गए है। 

और देश के करदाता के पैसे इन दुष्परिणाम को रोकने में खर्च हो जाते है। टैक्स के पेसो से बदमाशों को ढूंढा जाता है  मुकदमे लड़े जाते हैं, कुछ अस्पताल तो पोस्टमार्टम में ही बिजी रहते है। पता चला कि पार्टी में झगड़ा हुआ है चोट आई है। जो डॉक्टर इलाज के लिए है वो इनके कारनामे लिखता है। अपराधियो के उपर हज़ारो करोड़ खर्च हो  जाते है।  *शराब* ने दिए क्या हमें *कोर्टकचहरी* के चक्कर। पेसो की बर्बादी। समाज मे बाद बदनामी।युवावों पे गलत असर। कानून व्यवस्था पे बुरा असर। सब मे भय का माहौल। दारू के लिए चोरियां। नशे के लिए अफीमची और  इसमेकचियो की चोरियां जग जाहिर है। 

फिर कैसे कह सकते है कि इतने दर्द देने वाला नशा है हमें इनकम दे रहा है। मानव के उत्तम चरित्र के लिए *पवित्र इनकम* जरूरी है। नही तो व्यस्यावृति और शोषण की कमाई को बुरा कहने का कोई कह नही। हर कोई पेट भरने के लिए काम कर रहा है। सब के यहा आग जलनी जरूरी है।

लेकिन यह नशा बुरा है। जब डॉक्टर को पैसा कमाने का नशा हो जाता है, तो वो भी भगवान से भक्षक बन जाता है। 

यही कारण है कि जब *हवस वाली मानसिकता* का आज समाज मे *गर्म जोशी* से *स्वागत* हो रहा है। मनोरंजन की दुनिया अपने चरम सुख पे है। कपड़ो की जगह तन को तानना तमाशा है।

तो  फिर कैसे  कहते हो कि आप का ज़मीर जिंदा है।आप समाज नैतिकरूप से जिंदा है।आप ईमानदारी से नारी और घरेलु अपराधों को रोकना चाहते है।  आप की इच्छा शक्ति तनिक भी नही है! आज मानव त्याग को भूल गया है। केवल कथा सुनने से उद्धार नही होगा।चरित्र को मजबूत करेंगे!समाज की कोमल युवा पीढ़ी को नकारात्मक दृश्यों से बचावो गे तब ही आप इस दुनिया मे सुरक्षित इंसान बन पावोगे।

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