"प्रेम का उपहार

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          एक व्यक्ति था, जो बहुत ही गरीब था, उसे अपने रोज के दो वक्त की रोटी की व्यवस्था करने के लिये भी बहुत परेशानी का सामना करना पड़ता था, अर्थात जिस दिन वह काम करता था उस दिन खाना खाता था और जिस दिन नही करता उस दिन भूखे ही रहना पड़ता था। लेकिन वह नियम से ठाकुर जी सेवा करता। वह स्वयं भूखे रह जाता परन्तु ठाकुर जी को भोग अवश्य लगाता था।
          एक बार उसके एक मित्र के बहन की शादी का न्यौता आया, यह सोच में पड़ गया कि मेरे पास तो स्वयं के खाने के लिये नही हो पाती है, अब इस न्यौता के लिये उपहार कहाँ से लेकर आऊँ और जाना भी जरूरी है क्योकि मित्र की बहन की शादी का न्यौता है, बहुत देर सोचने के बाद वह फैसला करता है कि मैं जो भी रोज कमा कर लाऊँगा उसमे से एक वक्त का भोजन करूंगा और दूसरे वक्त का बचाकर उपहार के लिये पैसे इक्ठटा करूंगा। इस प्रकार सोचते भगवान का ध्यान करते हुए सो जाता है। और अगले ही दिन से वह रोज एक वक्त भोजन करके एक समय भूखे रहकर पैसे इक्ठटा करता है, देखते-देखते शादी की दिन करीब आ जाती है, वह देखता है कि पैसे ज्यादा इक्ठटे नही हो पाये है, अब वह सोच में पड़ जाता है कि कैसे करूँ अगर पैसे नहीं होगे तो उपहार नहीं लेकर जा पाऊँगा और यदि नहीं लेकर गया तो मेरे दोस्त को अच्छा नहीं लगेगा। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे, फिर वो ठाकुर जी याद करने लगता है।

"श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी, हे नाथ नारायण वासुदेवाय।"

          हे ठाकुरजी ! मैं क्या करूँ मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है कृपा करें मुझे राह दिखाये इस प्रकार वह भगवान को स्मरण करते करते सो जाता है, और जब वह सुबह उठता है तो देखता है उसके घर पर नये-नये कीमती उपहार रखे हुए हैं। पहले तो उसे कुछ समझ नहीं आता कि ये सब यहाँ आया कहाँ से फिर उसे लगता है हो ना हो अवश्य ही किसी का किया हुआ है, वह तुरन्त उठ कर ठाकुर जी के पास जाता है और भगवान का ध्यान करने लगता तब भगवान उससे कहते हैं, मैं तुम्हारे सेवा से अत्यंत प्रसन्न हूँ, जिस प्रकार तुम स्वयं भूखे रह कर भी मुझे नित्य भोग लगाते थे, मेरी सेवा करते थे, इससे मै अत्यंत प्रसन्न हूँ। यह सुन उसके आँखों से झर-झर कर आँसू बहने लगते हैं, और ठाकुर जी को प्रणाम कर कहने लगता है प्रभु मैं गरीब अवश्य हूँ लेकिन आपकी सेवा में मैने अपने पूरे मन से की है। इसलिये आज मुझे आपके दर्शन पाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ, इतना कहते ही ठाकुर जी अंतर्ध्यान हो जाते हैं।
          यदि निस्वार्थ मन से भक्ति एवं सेवा की जाये तो इसका फल अवश्य मिलता है। इसलिए सभी को निस्वार्थ मन से भक्ति और ठाकुर जी की सेवा करनी चाहिये।
🌹Radhay Radhay sb ko ji🌹

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