How Loyal we are to Our assets


आज हमारे पूर्वजो के बनाये विशाल कलात्मक मूर्ति, मंदिर और देवालय पूजा और देखभाल के आभाव से झुंज रहे हे .इनका सौन्दर्यकरण और सफाई नहीं हो पा रही हे ...और पूर्वजो की इस सांझी विरासत जरर जरर होती जा रही हे ....की हम लोगो को नए नए मंदिर और देवालय और मूर्ति बनाने का बहुत बेहूदा शोक लगा हे ..हम पूर्वजो के जैसे दिव्य मंदिर और मूर्ति कितना भी खर्च कर ले , नहीं बना सकते .इसलिये हमें पुरखो की इस विरासत की पूजा और देखभाल हम सब का कर्तव्य हे ....हम पुराने मूर्ति और मंदिर छोड़ के नए बनाने का मतलब के तेरा मेरा अलग अलग भगवान ...और यह हमारे देवतावो और पर्वजो का अपमान हे की , उनके अपने बच्चो के कल्याण के लिए बनाये देवालय आज खाँड़र हे या जर्जर हे और हम लोग अपना पैसा फिर ऐसे ही खण्डार बनाने में लगाने जा रहे हे जिनको फिर आगे कोई देख भल नहीं करेगा ....इस लिए धर्म ,देवता , पूर्वजो और आपसी भाईचारा के लिए जरुरी हे की हर बस्ती या शहर में एक केंद्रीय मंदिर हो ..हर पूजा और साज सज्जा वहा हो ...बचा पैसा से कल्याण और धर्म कार्य केंद्रीय रूप से हो ..ताकि बिना वजह न तो धन और देवता का अपमान हो ....हमें इस भावना की समाना करना चाहिए की हमारे पूर्वजो ने कुछ निशानिया हमें विरासत में दी हे और हम उन्हें संभाले
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